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Showing posts from July, 2017

ख़ामोशी भी बोलती है...

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ख़ामोशी भी बोलती है... सुन पाओगे तुम.... ?? झुकी हुई पलकें.. कांपते हुए होंठ... उखड़ती हुई साँसें... बहती हुई आँखें... ठहरे हुए कदम... दबे हुए से गम... सब बोलते हैं... इन अहसासों के धागों को बुन पाओगे तुम...??? हाँ ..ख़ामोशी भी बोलती है.... सुन पाओगे तुम...???? 

सुबह के वो पल

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बरसाती सुबह... मखमली अहसास... तुम्हारी आवाज़... ज़िन्दगी, कुछ पल ठहर गई हो जैसे।

ME v/s ME

मुझसे बसते 2 'मैं', वैसे ही जैसे बसते हैं सब में आज लड़ बैठे एक दूसरे से, आपस में ही... एक 'मैं', जो दुनियां से ज़रा ज्यादा प्रभावित है, दूसरे से बोला - "अच्छा !! तुम आज भी इश्क़ में यक़ीन करते हो.., भावनाओं में यक़ीन करते हो, सच में यक़ीन करते हो ?? अबे जाओ बे...फिर तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता..." दूसरे 'मैं' ने पहले 'मैं' को अपनी मुहब्बत में डूबी आँखों से देखा और बोला- "ख़ामोश...अगर मैं चला गया..,तो तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता" वाक़ई...कुछ नहीं हो सकता ।

जल्दी सूरज निकलेगा....

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जल्दी सूरज निकलेगा… मन के भीतर एक धधकता ज्वालामुखी विचारों का, बीच भंवर में कश्ती उलझी, पता नहीं पतवारों का, रोक रहे हैं आशाओं को, अवरोधों के आतंकी मार रहे फुफकारें देखो,अवसादों के विषदंती जीवन पथ के गलियारों में असमंजस का डेरा है नज़र नहीं आने देता कुछ चारों तरफ अँधेरा है पर कितना भी हो सघन अँधेरा, एक किरण से पिघलेगा जल्दी सूरज निकलेगा.... रात भयानक कितनी भी हो, प्रातः का हो जाना तय तम को चीर के किरणों का इस अम्बर पे छा जाना तय ग्रीष्म ऋतू में कितना भी तपना पड़ जाये धरती को पर तपने के बाद धरा पर, बरखा-शीत का आना तय क्षण बदले हैं, दिन बदले हैं, युग भी सदा बदलते हैं  कष्टों के यौवन, जीवन में इक न इक दिन ढलते हैं  कुछ भी स्थिर नहीं यहाँ तो, दुःख का समय भी बदलेगा.... जल्दी सूरज निकलेगा.... 

हम दोनों..

न जाने कब और किस जनम में सीख आये थे, साथ साथ या अलग अलग..,  पता नहीं मगर बड़ी अजीब है ये भाषा... जिसे 'वे' बोलतीं हैं और 'ये' सुन लेता है बिना किसी आवाज़ के...  बिना किसी शब्द के...  बिना किसी इशारे के... बस संवाद होता है  और सब कुछ समझ जाते हैं दोनों... दोनों -  तुम्हारी आँखें...मेरा दिल ।

तन्हाई तड़पाती है.....

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जब भी तन्हा लम्हों में,  तन्हाई  तड़पाती  है  पलकों की बाँहों से निकल तू मुझसे मिलने आती है।  जब जब दिल ने महसूस किया, कि कोई मेरा अपना न रहा  तब तब तू अश्क़ों में लिपटी, मेरा साथ निभाती है।  दूर कहीं सन्नाटे में जब कोई सदा नहीं उठती चुपके से मेरे कानों में, तब तेरी आहट आती है।  हर बार ख़ुशी के उस दिलकश,अहसास से मैं भर जाता हूँ  चंचल मासूम हँसी से जब तू यादों में मुस्काती है।  नामुमकिन है तुझ बिन जीना, फिर भी खुद को समझा लूँ  पर उस धड़कन को क्या बोलूं, तुझ बिन थम सी जाती है।  जब भी तन्हा लम्हों में,  तन्हाई  तड़पाती  है.....