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तो क्या हुआ..

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तो क्या हुआ,  कि इश्क़ में धोखे बहुत मिले तो क्या हुआ, कि ज़िन्दगी ने ठुकरा दिया तुम्हें तो क्या हुआ, कि तुमने जिसको चाहा, मिला नहीं तो क्या हुआ  कि दर्द-ओ-ग़म ने बिखरा दिया तुम्हें तो क्या हुआ, कि मुश्किल में सब छोड़ रहे तुमको तो क्या हुआ, कि अपनों ने ही रुसवा किया तुम्हें तो अब जो हुआ, वो बीत गया जो गुज़र गया, वो गुज़र गया लाख समेटा था तुमने पर बिखर गया तो बिखर गया अब बंद करो सब दरवाज़े जो खींच रहे, जो रोक रहे अब सुनो नहीं उन तानों को जो खड़े राह में टोक रहे निश्चय कर लो, और निकल पड़ो अब और नहीं, अब और नहीं ग़म, तकलीफ़ें, धोखे, आँसू अब और नहीं, अब और नहीं अब करो शुरू फिर नया सफ़र क़तरे क़तरे को पी लो तुम है महज़ ज़िन्दगी एक दफ़ा हर इक लम्हे को जी लो तुम तो ख़त्म करो अब निर्भरता सब कुछ तुम हो, सब तुम में है अब मत ढूंढ़ो रब चेहरों में तुम रब में हो, रब तुम में हैं । #लव_यू_ज़िन्दगी

उदास शामें...

शामों का उदासियों से ये क्या रिश्ता है कि हर शाम डूब ही जाती है आकर, उदासी की नर्म बाहों में... इसी अनजान से रिश्ते के डर से ना जाने कितने लोग...निकलते हैं रोज, किसी भीड़ की तलाश में, जहाँ भूल सकें ख़ुद को, उन चंद उदास घंटों के लिये.... कुछ लोग, जैसे मैं... हाँ मुझे भी सताता है ये डर.. मैं भी डरता हूँ.. और शायद इसीलिये भागता भी हूँ हर शाम, इस उम्मीद से कि कहीं कोई भीड़ छुपा लेगी मुझे भी रात होने तक... लेकिन अफ़सोस... अफ़सोस, वो भीड़ शोर तो करती है... ठहाके भी लगाती है, लेकिन रोक नहीं पाती उन लम्हों की उदासियों को... वो उदास लम्हे, हर रोज गुज़रते हैं.. और हर रोज छलकती हैं ये आँखें, पूछते हुए ये सवाल कि - "शामों का उदासियों से ये जो रिश्ता है, ये रिश्ता ख़त्म क्यों नहीं होता ?" लम्हे ज़वाब नहीं देते....