"डिंपल" - एक कहानी
शाम
को ऑफिस से आने के बाद रोज कि तरह बालकनी में बैठ कर चाय पी रहा था, तभी मोबाइल के
मैसेज बॉक्स में कुछ हलचल हुई देखा तो एक पुराने दोस्त का मैसेज था, बहुत दिनों
बाद हालचाल जानने के लिए मैसेज किया था, अक्सर व्यस्ताओं कि वजह से आजकल हम लोग ऐसे ही बातें
किया करते हैं, खैर पढने के बाद मैंने भी वापिस मैसेज किया और पूछा क्या नया चल
रहा है लाइफ में ? तो थोड़ी देर बाद उसका कॉल ही आ गया , कुछ देर इधर उधर कि बातें
करने के बाद बोला तेरे लिए एक खुशखबरी है , मैंने तुरंत पूछा शादी कर रहा है क्या
? तो हँसते हुए बोला.. “हाँ” ..मैंने चहकते हुए कहा ..”बधाई हो यार... कब कर रहा है ?..भाभी कहाँ से हैं ?...और नाम
क्या है भाभी का ??.......वो बीच में ही रोकते हुए बोला “अरे सांस तो ले ले सब बताता हूँ ! उसने आगे कहा वो ग्वालियर से है, टीचर है और शादी दिसंबर में होगी
और उसका नाम डिम्पल है !
मैंने
उत्सुकता से पूछा डिंपल ? बोला “हाँ”
मैंने
उसे फिर से बधाई दी और फोन रख दिया पर फोन रखने के बाद मेरे दिमाग में डिम्पल का
नाम घूमने लगा और यादों से अतीत के दरवाजे खुलने लगे जो मुझे ३ साल पहले गुज़रे हुए
उन चंद लम्हों में ले गए जिनमे मैं डिम्पल से मिला था
डिम्पल
.....नाम की ही तरह खूबसूरत...सपनो से भरी छोटी छोटी आँखें...सांचे में ढला हुआ
गोरा मासूम चेहरा..... कमर को छूते हुए घने काले बाल....और बच्चों की तरह चंचल,
निस्वार्थ हँसी.... अपने आप में ही एक ऐसा आकर्षण जो किसी को भी दीवाना बना दे !
कहने
को तो मैं डिंपल से महज एक दिन के लिए ही मिला था पर ये छोटी सी मुलाक़ात कभी न
ख़त्म होने वाले एक ऐसे रिश्ते में बदल जाएगी जिसे बिना किसी शर्त के मुझे ताउम्र
निभाना पड़ेगा...सपने में भी नहीं सोचा था ।
उस
दिन शनिवार था, मैं कॉलेज से आने के बाद शाम को रूम पे चाय बना रहा था तभी मेरी एक
दोस्त ‘रश्मि’ का कॉल आया जो
मेरे काफी क्लोज थी, मेरे फोन उठाते ही बिना किसी हेल्लो हाय के सीधे फरमान सुना
दिया गया कि ‘कल मुझे उसका एक काम करना
है’...मैंने कहा “सही है यार , न कोई हेल्लो हाय, न
कोई हालचाल, ...सीधे काम ? तो हँसते हुए बोली “हाँ..” मैंने कहा “ठीक है जी हुकुम कीजिये”.....बोली “मेरी एक फ्रेंड आई है और कल उसका बैंक का एग्जाम है, तो तुम्हे उसे
उसके एग्जाम सेन्टर तक ले जाना है और एग्जाम के बाद ले कर आना है, समझ गए ?” मैंने कहा “जी हुजुर अच्छी तरह से...बन्दा कल
सुबह आपके रूम पे हाजिर हो जायेगा” तो हँसते हुए बोली “गुड बॉय...और हाँ टाइम पे आना”…....“डोन्ट वरी , पहुच जाऊंगा..अभी फोन
रखो....बाय..” बोल कर मैंने फोन रख दिया ।
अगली
सुबह तैयार होकर ठीक 9:00 बजे मैं उसके रूम पे पहुच गया …दरवाजे पर नोक किया तो रश्मि की छोटी
बहन ममता ने दरवाजा खोला....देखते ही मैंने मुस्कुराते हुए कहा “गुड्ड मोर्निंग” वो चहकते हुए बोली “वैरी गुड मोर्निंग...क्या बात है भैया एक दम टाइम पे... ह्म्म्म ??”......“येस्स आलवेज” बोलकर हम दोनों ही हंसने लगे। मैंने पूछा “दीदी कहाँ हैं ?” बोली “किचेन में चाय बना रहीं हैं” मैंने कहा “ओक्के.. फिर तो मैं एक दम राईट टाइम पे आया हूँ” बोली “जी वो तो है” तभी मेरी नज़र बालकनी पे गई, देखा तो एक बेहद खूबसूरत सी लड़की हाथ
में बुक लेकर टहलते हुए कुछ याद करने कि कोशिश कर रही थी...मैंने ममता कि तरफ
देखते हुए इशारे से पूछा ‘वो कौन है ?’ तो उसने मेरे कान के पास आके फुसफुसाते हुए
कहा “यही तो हैं वो जिन्हें आपको ले
जाना है ..डिंपल दीदी” मैंने कहा “ओक्के...तो ये हैं वो...” बोली “हाँ ..मस्त हैं न?”.... “अच्छा..!!” मैंने उसका कान पकड़ते हुए कहा। तभी
मेरी फ्रेंड आ गई और मुझे चाय का कप पकड़ाते हुए बोली “थैंक्स ..टाइम पे आने के लिए”.........“हाँ
अब तो थैंक्स से ही काम चलाना पड़ेगा, क्यूंकि मेरे सन्डे कि तो वाट लगा ही दी हैं
तुमने”...मैंने
मैंने झूठमूठ की मायूसी जताते हुए कहा.....वो हँसते हुए बोली “शटअप...आओ तुम्हे डिम्पल से मिलवाती हूँ” उसके बाद उसने हमारा औपचारिक परिचय कराया और शुरूआती
हेल्लो..हाय के बाद मैंने कहा कि “अब मेरे ख्याल से आपको को पढना बंद कर के तैयार हो जाना
चाहिए नहीं तो एग्जाम यहीं बैठ के देना पड़ेगा” सुनकर वो हंसने लगी और किताब बंद करते हुए बोली “बस तैयार ही हो रही हूँ” और कुछ देर बाद वो नहा धो कर तैयार हो गयी और हम दोनों
मेरी फ्रेंड और उसकी बहन को बाय बोलकर बस स्टॉप पे आ गए।
एग्जाम
सेंटर काफी दूर था और हमारे पास टाइम कम इसलिए हमने बस का इंतज़ार न करते हुए एक
ऑटो ली और निकल पड़े। “हम टाइम पे पहुँच तो जायेंगे न ?” उसने चिंताबस पूछा, डोंट
बरी , पहुँच जायेंगे ...मैंने विश्वास दिलाते हुए कहा। फिर भी वो बार बार घड़ी देखे
जा रही थी और थोड़ी देर में ऑटो बाले से बोली “भैया थोड़ा और तेज़ चलाओ “ तो मैंने
तुरंत थोड़ा शरारती अंदाज़ में कहा “नहीं भैया..पहुंचना है “ और सुनते ही वो हंसने
लगी....उसके बाद हमने रास्ते भर कोई बात नहीं की। थोड़ी देर बाद हम सेंटर पहुँच गए
और जल्दी जल्दी हमने उसका रोल नम्बर और रूम सर्च किया ,उसे आल द बेस्ट बोला और
बाहर मिलने का बोल के बाहर आ गया।
अब
मेरे पास 3 घंटे थे तो मैं टाइम पास करने एक दोस्त के रूम पे चला गया जो वहीँ पास
में रहता था…पहुँच कर दरवाजे पे नॉक किया तो अन्दर से थोड़ी देर तक तो कोई आवाज
नहीं आई, पर जब बार बार नॉक किया तो उसने
पूछा ‘कौन है ?’ मैंने कहा ‘पहले दरवाजा खोलो फिर बताता हूँ’...,वह बडबडाते हुए
आया दरवाजा खोल के अधखुली आँखों को पूरा खोलते हुए मुझे घूरने लगा....
सन्डे
के दिन सुबह सुबह किसी दोस्त के यहाँ पहुँच जाओ तो उसका चेहरा देखने लायक होता है
, मान लो कह रहा हो इस कमबख्त को भी यही टाइम मिला था आने को..,वो भी आज के
दिन..!! मैंने उसके भाव समझ के हँसते हुए कहा ‘अब मन में गालियाँ देना बंद कर और
जा के चाय नाश्ते का इंतजाम कर, भूख लग रही है’...बोलते हुए उसकी जगह उसके बेड पे
जा के पसर गया.....देख कर वो हँसने लगा और गाली देते हुए दूध लाने का बोल के चला
गया ! .....दोस्ती अगर सच्ची हो तो दोस्त की गाली भी दुआ के जैसे लगती है...,और कई
बार तो गालियों के मापदंड से पता चलता है की दोस्ती का स्तर क्या है ? खैर, हमारी
चाय और गपशप के बीच पता ही नहीं चला कब 2:30 घंटे गुजर गए....मैंने घडी देखते हुए
कहा भाई अब मैं निकलता हूँ.,पेपर छूटने वाला होगा...’ बोलकर, पेपर ख़तम होने के ठीक पहले वापिस एग्जाम
सेंटर आ गया और उसके बाहर आने का वेट करने लगा थोड़ी देर में वो बाहर आ गई, उसके
बाहर आते ही वो मुझे ढूंढे उसके पहले ही मैं उसके सामने प्रकट हो गया। मैंने पूछा
‘ कैसा रहा ?’ बोली “मस्त..” एग्जाम सेंटर के बाहर काफी भीड़ हो रही थी इसलिए हमने
जल्दी जल्दी वहां से निकल कर बस पकड़ी और वापिस आ गए. बस स्टॉप पे उतरने के बाद हम
टहलते हुए रूम की ओर चल दिए। पेपर अच्छा जाने की वजह से वो काफी खुश लग रही थी….
“थैंक
यू”...उसने मेरी ओर देख कर कहा...
”किसलिये
?”....
“मुझे
वक्त पर एग्जाम सेन्टर पहुचाने के लिये”
मैंने
कहा ‘वो आप अपनी फ्रेंड को बोलना..’, सुनकर वो मुस्कुरा दी...थोड़ी देर चुप रहने के
बाद बोली “एक बात पूछूं ?” मैंने कहा ‘पूछो’.... ‘पहली मुलाकात में कोई किसी को
किस हद तक जान सकता है ?’....मैंने कहा “ये तो जानने वाले की सोच पर निर्भर करता
है की वो कितना जानना चाहता है और किस तरह जानता है..पर फिर भी मुझे नहीं लगता की
पहली मुलाकात में किसी को पूरी तरह जान पाना संभव है.....पर ऐसे क्यों पूछा ??” बोली...”बस यु ही....पता है आज मैं बहुत खुश
हूँ....”, मैंने कहा ‘हाँ वो तो दिख ही रहा है आपका पेपर जो अच्छा गया है’.....बोली
“नहीं... सिर्फ पेपर की वजह से नहीं...”... ‘तो ?’ मैंने आश्चर्य से पूछा... “क्यूंकि
आज पहली बार मैं इस तरह खुल के घूम रही हूँ.. खासकर किसी लड़के के साथ...” .....
“मतलब..?”
....
“मतलब..ये कि मेरी ज़िन्दगी कॉलेज और घर के बीच ही गुज़रती है मुझे इस तरह घूमने की
इज़ाज़त नहीं है...कभी वक्त से अगर 10 मिनिट भी लेट हो जाओ तो सैकड़ों सवालों के जवाब
देने पड़ते हैं.....पर आज इस तरह इस माहोल में आ कर बहुत अच्छा लग रहा है....” वो बोल रही थी और मैं बस उसे देखे जा रहा
था....तभी उसका फोन आ गया और वो धीमी आवाज में बात करते हुए चलने लगी...बस मुझे
इतना समझ आया की वो उसके घर से तो नहीं था और उसने बातों में मेरा ज़िक्र भी किया
था....थोड़ी देर बात करने के बाद उसने फोन रख दिया...तब तक हम लोग फ्रेंड के रूम पे
आ चुके थे.
मेरी
फ्रेंड ने पेपर के बारे में पूछने के बाद कहा ‘अब तुम लोग थोड़ा रेस्ट कर लो थक गए
होगे, फिर एक साथ खाना खाते हैं’........“हाँ यार भूख तो लग रही है..”... कहते
हुये मैं चेयर बैठ कर आँख बंद कर के रिलैक्स करने लगा...चेंज करने के बाद डिम्पल
भी आ गई और बगल वाली चेयर पर बैठते हुए बोली “क्या सोच रहे हो ?” मैंने कहा ‘कुछ
नहीं बस ऐसे ही’...हालांकि, उस ‘ऐसे ही’ का मतलब ‘डिंपल’ ही था..तभी मेरी फ्रेंड
खाना लगाने लगी..मैंने पूछा ‘ममता कहाँ है ?’ ... “अपनी फ्रेंड के यहाँ गई है शाम
तक आएगी..” गिलास में पानी डालते हुए उसने बताया.....“पता है..जनाब हाथ भी देख
लेते हैं” खाते हुए रश्मि ने मेरी ओर इशारा कर के कहा.... ‘सच में ?’ डिंपल ने
उत्सुकता से पूछा.... ‘नहीं यार..बस थोड़ा बहुत’ मैंने थोड़ा शरमाते हुए कहा..... ‘फिर
तो आप लंच के बाद मेरा हाथ देख रहे हैं....आखिर मै भी तो जानू मेरी रेखाएं क्या
बोलती हैं ?’ हक़ के साथ डिंपल ने आदेश दिया .... ‘ओके जी’ उसकी बात को फ़रमान समझते
हुये मैंने सहमति दी...
पता
नहीं क्यूँ,.. मैं जितना वक्त उसके साथ गुजारता जा रहा था मुझे उसमे दिलचस्पी बढ़ती
जा रही थी....उसकी बात सुन के और बात करने का मन कर रहा था...उसे और जानने का मन
कर रहा था... उसे जी भर के देखते हुए उसके चेहरे पे ही ठहर जाने का मन कर रहा
था....बहुत कुछ कहने वाली उसकी आँखों को पढ़ लेने का मन कर रहा था..... वो बहुत
खूबसूरत थी, पर उसकी ख़ूबसूरती से इतर कुछ और भी था जो मुझे उसकी ओर आकर्षित कर रहा
था...हालाँकि ये सारे प्यार के प्रारंभिक लक्षण थे पर मुझे उस से प्यार हो रहा था
ये अभी तक निश्चित नहीं हुआ था....
खाने
के बाद मैं और रश्मि बातें करने लगे..तभी रश्मि ने कहा ‘तुम लोग बातें करो मुझे
नींद आ रही है...रात को फिर से पढाई करनी है...थोड़ी देर में जगा देना..” बोलकर वो
चली गई.....पर मेरा ध्यान बार बार डिंपल की ओर ही जा रहा था जो फोन पे किसी से बात
कर रही थी...फ़ोन रखने के बाद वो बैठकर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली “लीजिये ये रही
हमारी किस्मत..,अब आप जरा पढ़ कर बताइये कि ये रेखाओं की गलियां मुझे कहाँ ले जाने
वालीं हैं” .... मैं तो जैसे इसी इंतज़ार में ही बैठा था... मैंने तपाक से उसकी
हथेली अपने सामने करते हुए जैसे ही पहली नज़र रेखाओं पर डाली, मैं ठिठक गया...उसकी
जीवन रेखा जिसे लाइफ लाइन कहा जाता है, बहुत छोटी थी...मैंने पामेस्ट्री का अध्यन
किया हुआ है और जितनी लम्बी लाइफ लाइन मैंने उसके हाथ में देखी थी उस हिसाब से वो
बहुत लम्बी ज़िन्दगी नहीं जीने वाली थी...बस कुछ ही साल और बचे थे उसके पास, रेखाओं
के अनुसार.... ‘इतनी प्यारी लड़की, क्या इतनी जल्दी दुनियां छोड़ देगी ?....’ बार ये
सवाल मेरे दिल में उठ रहा था...‘क्या हुआ ज्योतिषी महाराज ?’...उसकी आवाज से मेरी
तन्द्रा टूटी.....फिर भी मैं ख़ामोश रहा....मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या
जवाब दूँ......‘बताइये बताइये खुल के बताइये...’ मेरे चेहरे के भाव पड़ते हुये उसने
कहा.... ‘जो आप बता नहीं पा रहे...शायद मैं वो पहले से जानती हूँ’..... इन चंद
शब्दों को सुनकर मैं आश्चर्य से उसे देखने लगा ... ‘क्या जानती हो तुम...?...
अचानक से मेरी तहजीब में लिपटा हुआ ‘आप’ अब ‘तुम’ बन चुका था..,जो साबित कर रहा था
कि, सवाल में आश्चर्य कम और गुस्सा ज्यादा था....ये शायद मेरे अन्दर का पनपता हुआ
प्यार था जो अब बाहर निकलने को तड़प उठा था.... ‘यही कि मैं ज्यादा नहीं जीने वाली
हूँ’.......उसने मासूमियत से मुस्कुराते हुये कहा.....जो मैं बोल नहीं पा रहा था
उसे इस तरह इतनी आसानी से उसी के मूँ से सुनकर मैं अवाक रह गया मुझे इस तरह की
उम्मीद नहीं थी.... “किस बेवक़ूफ़ ने कह दिया तुमसे ?’ ..मैंने जैसे तैसे खुद को
सँभाला..... ‘जानती हूँ मैं...और ये भी जानती हूँ कि शायद मैं खुद ही अपनी ज़िन्दगी
ख़त्म करुँगी’......अपना हाथ हटाते हुए बोले गए उसके ये शब्द तो जैसे कुठाराघात की
तरह थे मेरे लिए....एक तरफ तो जी कर रहा था उसे खींच के एक चांटा लगाऊं, उसकी इस
बेवकूफ़ी भरी बातों पर, और एक तरफ लग रहा था उठ कर उसे सीने से लगा के कहूँ.. कि
तुम्हे कुछ नहीं होगा.., अजीब स्थिति थी वो भी...... शायद अब मेरा प्यार बाहर आ चुका
था.....और क्यूँ न हो जब आप किसी के प्रति आकर्षित हो रहे हों और अचानक पता चले कि
वो तो जाने वाला है तो भावनाओं पे काबू कर पाना मुश्किल हो जाता है....तो फिर यहाँ
तो बात हमेशा के लिए जाने वाली थी.... “यकीन नहीं हो रहा न..?’’ ...उसकी आवाज़
सुनकर मैं फिर ख्यालों से बाहर आया पर खामोश रहा.... “पर ये सच है..क्यूंकि अगर वो
मुझे नहीं मिला तो मैं खुद को मिटा लूंगी’ ..... ‘वो मतलब ?’ बहुत सारे सवालों और
शंकाओं को एक साथ समेटे हुये मेरी जुबान से अनायास ही ये डेढ़ शब्द निकल गए....
“मेरी ज़िन्दगी..मेरा प्यार..मेरा फ़रहान..” उसका विश्वास खुद पर इतराते हुए बाहर
आया....
सुनकर
एक धक्का सा लगा....ऐसे लगा जैसे किसी ने नींद से जगा दिया हो...आँखे खुलीं...लब
ख़ामोश.....और मेरे सपने ?...... सपनो का तो अब पोस्टमार्टम हो चुका था जिसमे निकल
कर आया था कि मेरा गुनाहगार मैं खुद ही हूँ..जिसने अपनी मर्जी से अपना ही क़त्ल
किया है.... पर जल्द ही मैं संभला...क्यूंकि मुझे अहसास हो चुका था की मेरी गाड़ी
ग़लत ट्रेक पर थी... और जब आपको पहले ही पड़ाव पर समझ आ जाये, तो बुरा तो लगता है
लेकिन इस बात की ख़ुशी भी होती है कि वक्त रहते समझ तो आया.....और उसके बाद जो
रिश्ता निकल के आता है, वो बहुत परिपक्व और निस्वार्थ होता है जिसकी ख़ुशबू अब मुझे
आने लगी थी और जिसे डिंपल तो पहले से ही निभा रही थी पर अब शायद मेरे दिल ने भी
हरी झंडी दे दी थी.....
’क्या
सोचने लगे ?’ मुझे ख़ामोश देखकर उसने कहा.. “फ़रहान के बारे में सोच रहा हूँ ..कितना
लकी है न वो ? कि उसे तुम जैसी लड़की मिली...”
मैंने बात बदलते हुए कहा... ‘नहीं..मैं लकी हूँ कि मुझे वो मिला’ आँखों में
आई हुई चमक के साथ उसने कहा.... “चलो यार फिर तो मैं तुम्हारी कहानी सुनना
चाहूँगा...बिकॉज़ love stories सुनना मुझे बहुत पसंद है....सुनाओगी ??” अपनी
भावनाओं की पोटली समेटते हुए मैंने पूछा.....
‘जरुर...’
वो मुस्कुरा दी....
उसने
बताया “कि वो इक ऐसे माहौल में पली बड़ी है जहाँ औरत के अस्तित्व को कुछ नहीं समझा
जाता..जहाँ बड़ों का फरमान ही सब कुछ होता है...जिसे आँख मूंदकर कर हर किसी को निभाना
होता है....किसी से प्रेम करना तो दूर, उसकी बात करना भीअपराध माना जाता है....जहाँ शादी जैसे बड़े फ़ैसले माँ-बाप
ही लिया करते हैं जिसमे बच्चों की इच्छा-अनिच्छा की वजाय, समाज की रीतियों का
ध्यान रखा जाता है....
मेरे
कॉलेज में मैं ही इकलौती ऐसी लड़की थी जिसे प्यार और बॉयफ्रेंड जैसी बातों में कोई
दिलचस्पी नहीं थी...जहाँ एक ओर लड़कियों के लिए सजना संवरना उनकी प्राथिमकता हुआ
करती है वहीँ मुझे सिर्फ मेरी पढाई से मतलब था....इसी वजह से मेरी किसी से ख़ास
दोस्ती भी नहीं होती थी और कई बार तो मेरी दोस्त मुझे बोरिंग कहा करतीं थीं...जिसकी
लाइफ में प्यार और मस्ती के लिए कोई जगह नहीं थी....लेकिन इस प्यार को नापसंद करने
वाली लड़की को भी जब प्यार हुआ तो एक ऐसे लड़के से जो न सिर्फ दूसरी जाति का है
बल्कि दूसरे मज़हब का भी.....
पहले
दिन से ही मुझे फ़रहान में कुछ ख़ास लगा था जब पहली बार मैंने उसे देखा...मेरी एक
दोस्त ने हमारा औपचारिक परिचय कराया था...पर वो नज़रों से शुरू हुआ रिश्ता यहाँ तक
पहुँच जायेगा मुझे अंदाज़ा भी न था....वक्त के साथ मुझे फ़रहान का साथ उसके और करीब
लाता गया...उसका वो हंसमुख चेहरा....उसका वो मोरल सपोर्ट...उसका वो मेरी ख़ामोशी को
पढ़ लेना...मुझे उदास न देख पाना...उसके फैसलों में भी मुझे शामिल करना......सब कुछ
एक जादू की तरह था जो मुझे उसका बना रहा था...न चाह के भी मैं मेरे बन्धनों को तोड़
रही थी.....वो है ही ऐसा कि किसी को भी दीवाना बना दे....पर पता नहीं उसने मुझे ही
क्यों चाहा....लेकिन प्यार के नाम से भी दूर रहनेवाली, ये लड़की आज उसे इतना प्यार करती है
कि......” आगे की कहानी उसकी आँख से निकले
हुए आंसुओं ने खुद बयान कर दी...आंसू तो मेरे भी आ रहे थे पर मैंने उन्हें आँखों
में ही समां लिया... “डोंट वरी..तुम्हे वो जरुर मिलेगा..तुम दोनों एक दूसरे के लिए
ही बने हो”....उसके काँधे पे हाथ रख के तस्सल्ली देते हुए कहा... “थैंक्स..”
आंसुओं को पोछते हुए बोला गया एक शब्द काफ़ी था मेरी तस्सल्ली के लिए...... “इसीलिए
मैंने तुमसे कहा था कि शायद मैं खुद ही अपने आपको मिटा लूंगी अगर वो मुझे नहीं
मिला तो....और शायद इसीलिए मेरी लाइफ लाइन इतनी छोटी है .....” उसने आंसू पोछ के
मुस्कुराते हुए आगे कहा..... “ऐसा कुछ नहीं है डिंपल.. इन रेखाओं से कुछ नहीं होता
है...और फिर तुम्हारे दूसरे हाथ में भी तो रेखाएं हैं जिसमे लाइफ लाइन भी लम्बी
है....ये सब बेकार की बातें हैं...” मैं बोले जा रहा था और वो हंस रही थी...शायद
इसलिए कि कल तक जिस ज्योतिष को मैं बड़े विश्वास के साथ सच्चा मान रहा था आज वही
बेकार हो गया.....मैं चुप था....थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मैंने कहा “ मैं
प्रार्थना करूँगा तुम्हारे लिए...” .... “और उस से क्या होगा... मेरी लाइफ लाइन
बड़ी हो जायेगी...?” उसने एक बार फिर मुस्कुराते हुये कहा... “पता नहीं....पर मैं
करूँगा..” एक लम्बी सांस ले के मैंने कहा...वो चुप रही.....
शाम
हो चुकी थी...और हम ख़ामोश भी.... “अब सीरियस बातें बहुत हो गयीं चलो अब मैं तुम्हे
भोपाल की रौनक दिखाता हूँ...यहाँ की फेमस आइसक्रीम खिलाता हूँ...क्या ख्याल है
ज़नाब का ?? मैंने माहौल को बदलते हुए कहा... “ओके...” वो मुस्कुरा दी....
सच तो
ये था की मुझसे उसकी उदासी बर्दाश्त नहीं हो रही थी और यही एक तरीका था उसे खुश
करने का...
शाम
को घूमने के बाद जब मैंने उसे रूम पे छोड़ा तो वापिस जाने का मन नहीं कर रहा था..पर
फिर भी जाना तो था..... “चलो अब मुझे मेरी ड्यूटी से आजाद करो...मुझे जाना
होगा..”.....उसे देखते हुए मैंने कहा.....“थैंक्स..थैंक्स फॉर एव्रीथिंग...” कहा
तो उसके लबों ने था पर ऐसे लग रहा था मानों उसकी डबडबायी हुयी आँखें बोल रही
हैं.... “उसकी कोई ज़रूरत नहीं.....बस मेरी एक बात याद रखना...चाहे कितनी भी कठिन
परिस्थिति हो..., सही फ़ैसला लेना और..... हमेशा ज़िन्दगी को चुनना.... मैं
प्रार्थना करूँगा तुम्हारे लिए... ” उसने सहमति में सर हिला दिया.... “और हाँ
तुम्हारी कोई लाइफलाइन छोटी-वोटी नहीं है..तुम बुड्ढी हो के ही मरोगी”...... सुनकर
वो हंस पड़ी और उसकी आँखे भी आंसुओ के साथ.....
अगली
सुबह उसकी ट्रेन थी मेरे उठने से पहले ही वो चली गयी., जल्दबाजी में मैं उसका नंबर
भी नहीं ले पाया, सोचा था फेसबुक पे सर्च कर लूँगा या रश्मि से ले
लूँगा...,लेकिन न वो फेसबुक पे मिली और न मैंने नंबर लिया....बस यूँ ही यादों में
कभी कभार हमारी मुलाकात होती है......हर मुलाकात में वो उतनी ही खूबसूरत....उतनी
ही मासूम..,उतनी ही जिंदादिल नज़र आती है...जो अपनी मासूम मुस्कराहट बिखेरती हुई
मेरी यादों को महका जाती है......हाँ हर बार, जाने से पहले मुझे मेरा वादा याद
दिलाना नहीं भूलती.........
“कहाँ
खोये हो..? कब से आवाज़ दे रही हूँ...मंदिर नहीं जाना क्या ..?” मम्मी की आवाज़ से
मैं चौंका...देखा तो 7 बज रहे थे...और बची हुई चाय भी ठंडी हो चुकी थी...
मैं
उठा और थोड़ी देर में तैयार हो के मंदिर जा पहुंचा...आखिर हर बार की तरह, अपना वादा
जो निभाना था....।
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