अड़ियल अतिथि

पहाड़ों का इनविटेशन..
(हाँ वही निमंत्रण..)
नदियों का बुलावा...
बादलों के संग यात्रायें...
जंगलों के यहाँ उत्सव...
ढाबों के संग चाय....
रेलों से चर्चायें...
और खेतों से मुहब्बत...

कितना कुछ तो रुका हुआ है
इस अड़ियल अतिथि "संघर्ष" की वजह से..

ये कमीना जाये...तो फिर हम भी निकलें..
अपनी धुन में...पूरे करने सारे काम..
अपनी दुनियां...अपने राम ।

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