सुनो तुम मुस्कुराती हो तो लगता है कि, उम्मीद की दुनियां अब भी ज़िन्दा है.. और अब भी सबकुछ उतना बुरा नहीं हुआ, जितना की ख़बरों में दिखता है... अब भी सूरज को निहारा जा सकता है अब भी पहाड़ों को पुकारा जा सकता है अब भी नदियों में नहाते हुए फोटो खिंचाई जा सकती है वो फोटो जो सिर्फ़ फेसबुक के लिये ना हो, बल्कि एक याद भी हो.... अब भी चिड़ियों के साथ गुनगुनाया जा सकता है अब भी अजनबियों से अपनापन जताया जा सकता है अब भी पड़ोसियों को गले लगा कर बधाईयाँ दी जा सकती हैं बिना किसी शक़ या संकोच के और अब भी छोटी छोटी कोशिशों से किसी रोते हुए चेहरे को, हँसाया जा सकता है... तो सुनो, मुस्कुरा दिया करो ना प्लीज... क्यूंकि इस वक्त मुझे और दुनियां, दोनों को ही, उम्मीदों की बहुत ज़रूरत है।
ख़ामोशी भी बोलती है... सुन पाओगे तुम.... ?? झुकी हुई पलकें.. कांपते हुए होंठ... उखड़ती हुई साँसें... बहती हुई आँखें... ठहरे हुए कदम... दबे हुए से गम... सब बोलते हैं... इन अहसासों के धागों को बुन पाओगे तुम...??? हाँ ..ख़ामोशी भी बोलती है.... सुन पाओगे तुम...????
जल्दी सूरज निकलेगा… मन के भीतर एक धधकता ज्वालामुखी विचारों का, बीच भंवर में कश्ती उलझी, पता नहीं पतवारों का, रोक रहे हैं आशाओं को, अवरोधों के आतंकी मार रहे फुफकारें देखो,अवसादों के विषदंती जीवन पथ के गलियारों में असमंजस का डेरा है नज़र नहीं आने देता कुछ चारों तरफ अँधेरा है पर कितना भी हो सघन अँधेरा, एक किरण से पिघलेगा जल्दी सूरज निकलेगा.... रात भयानक कितनी भी हो, प्रातः का हो जाना तय तम को चीर के किरणों का इस अम्बर पे छा जाना तय ग्रीष्म ऋतू में कितना भी तपना पड़ जाये धरती को पर तपने के बाद धरा पर, बरखा-शीत का आना तय क्षण बदले हैं, दिन बदले हैं, युग भी सदा बदलते हैं कष्टों के यौवन, जीवन में इक न इक दिन ढलते हैं कुछ भी स्थिर नहीं यहाँ तो, दुःख का समय भी बदलेगा.... जल्दी सूरज निकलेगा....
देर से ही सही लेकिन उजाला जरूर होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
Shukriya Kavita ji
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