किरकिरी...
बड़ा मन था उसे भी अपने बटुए में सजाने का... हमेशा, ज़िन्दगी भर को मगर तुमने उसे फूंका और वो खो गई गिरकर... जहाँ से आई थी उड़कर हवा के एक झोंके में हाँ वही... वही तो जिसे हमने निकाला था सलीके से तुम्हारी आँख से उस दिन.. वही किरकिरी..वो ख़ूबसूरत किरकिरी.. जो छू आई थी उस दिन, उस ज़मीन को, जिसे इत्तेफ़ाकन हम घर समझ बैठे थे.. वो किरकिरी तुमने फूंक दी ।