बात तो बस इतनी सी थी....
बात तो बस इतनी सी थी....
सारे जग में अँधियारा
और तुम में सूरज दिखता था,
जो दिल पे अपनी किरणों से,
जो भी चाहे लिखता था
जिसका लिखा कभी क्षण भर को,
भी न हम थे मिटा सके
जिसकी धूप भरी परछाई
अम्बर से न हटा सके
जिसकी प्रीत की गंगा
मेरे रोम रोम पे बसती थी
कभी आँख से बह जाती,तो कभी होंठ से हंसती थी
जिसको तुमने मिथ्या माना,
जिसे समझ न पायीं कभी......
बात तो बस इतनी सी थी.…।
- जितेंद्र परमार
सारे जग में अँधियारा
और तुम में सूरज दिखता था,
जो दिल पे अपनी किरणों से,
जो भी चाहे लिखता था
जिसका लिखा कभी क्षण भर को,
भी न हम थे मिटा सके
जिसकी धूप भरी परछाई
अम्बर से न हटा सके
जिसकी प्रीत की गंगा
मेरे रोम रोम पे बसती थी
कभी आँख से बह जाती,तो कभी होंठ से हंसती थी
जिसको तुमने मिथ्या माना,
जिसे समझ न पायीं कभी......
बात तो बस इतनी सी थी.…।
- जितेंद्र परमार
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